शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार, तज़्किरतुल्
औलिया और
ज़िक्रे अब्दुल्लाह मुबारक
शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार–
नीशापूर के पीर और
आरिफ शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार ऐसे महान व्यक्ति हैं जो सर्वत्र प्रसिद्ध हैं तथापि अत्यन्त अपरिचित।
शेख का जन्म ५३७ हिजरी में निशापूर के कदकन नामक स्थान पर हुआ था तथा चूंकि वहीं
दवायें बचने का कार्य किया करते थे इसलिये अत्तार
के नाम से प्रसिद्ध हुए। शेख़ फ़रीदुद्दीन एक दवाफरोश के यहां रोगियों की दवा करते
थे तथा अपने समय के विद्वानों जैसे शेख नज्मुद्दीन कुबरा तथा अन्य अध्यात्म के
विषय में शिक्षायें ग्रहण किया करते थे। वे सूफीवाद तथा रहस्यवाद में ऐसे आग बढ
गये कि स्वयं इस पन्थ के महान नायकों में इनकी गणना होने लगी । यहां तक कि उनके
पश्चाद्वर्ती खुदावन्दगार मौलाना जलालुद्दीन रूमी ने उनके बारे में कुछ इस
तरह सम्मानपूर्ण उद्गार कहे थे–
अत्तार रूह
बूदो सनाई दो चश्मे ऊ
मा अज़ पये सनाई ओ अत्तार आमदीम
तथा–
हफ़्त शह्रे इश्क़ रा अत्तार गश्त
मा हनूज़ अन्दर ख़मे यक कूचे ईम
शेख़ अत्तार वर्ष
६२७ हिजरी में मुग़लों के आक्रमण में मार डाले गये। उनके मारे जाने
के संबन्ध में अनेक प्रकार की कथायें प्रचलित हैं।
कथा कहने के
क्षेत्र में अत्तार सनाई से बढकर हैं। इनकी रचनाओं में एक पूर्णता का तत्त्व दिखाई
पड़ता है जो अन्य कवियों के यहां दुर्लभ है।
प्रसिद्ध है कि
अत्तार की गद्य पद्य कुल रचनायें मिलाकर उतनी ही हैं जितनी कि क़ुर्आन के सूरे
अर्थात् ११४ । इनमे से प्रमुख का विवरण निम्नवत् है–।
१– उनके क़सीदे तथा ग़ज़लों के दीवान जिसमें दस हज़ार शेर
हैं। दूसरी रचनायें हैं– इलाहीनामा, मुसीबतनामा, ख़ुसरौनामा, पिन्दारनामा, असरारनामा
प्रसिद्ध हैं।
२– उनकी मस्नवियों में सबसे प्रसिद्ध मन्तिक़–उत्तैर है
जिसमें सात हज़ार शेर हैं। इसमें अध्यात्म की उपासना पद्धतियों तथा ईश्वर तथा
एकत्व तक पहुंचने के रहस्यों को चिडियों के माध्यम से बताया गया है जो अपने भावी
स्वामी सीमुर्ग नामक पक्षी की खोज में हैं। इसमें क्रमशः सात भूमिकाओं का वर्णन
किया गया है। वै हैं – तलब, इश्क़, माऽरिफ़त, इस्तिग्ना,तौहीद, हैरत और फ़ना।
अत्तार ने गजाली की पुस्तक रिसालतुत्तैर से यह कथा ली है तथा –सैरुल् उबाद अलल् मियादे सनाई– से भी लाभ उठाया है।
शैख़ अत्तार ईरान
के महान कवियों तथा विचारकों में से एक हें जिनका प्रभाव ईरान की विचार प्रणाली पर
बहुत अधिक पडा है। जामी ने नफहातुल् उन्स में मौलाना जलालुद्दीन रूमी को इस प्रकार
उद्धृत किया है–
“१५० वर्षों बाद मंसूर हल्लाज की आत्मा अत्तार में प्रविष्ट
हुई और उनका मार्गदर्शन किया।”
इसी बात को
प्रमाणित करती हुई उनकी एक ग़ज़ल प्रस्तुत की जा रही है जो बहुत ही विवादास्पद रही
है–
مسلمانان من آن گبرم که
بتخانه بنا
کردم شدم بر
بام بتخانه درين عالم ندا کردم
صلاي کفر در دادم شما را
اي مسلمانان که
من آن کهنه بتها را دگر باره جلا کردم
از آن مادر که من زادم
دگر باره شدم
جفتش از
آنم گبر ميخوانند که با مادر زنا کردم
به بکري زادم از مادر از
آن عيسيم
ميخوانند
که من اين شير مادر را دگر باره غذا کردم
اگر "عطار"
مسکين را درين گبري
بسوزانند
گوه باشيد، اي مردان که من خود را فدا کردم
(ऐ मुसलमानो ,
मैं वो काफ़िर हूं जिसने बुतख़ाने की नींव डाली है । मैं बुतख़ाने की छत पर चढ़
गया और इस संसार में घोषणा की। ऐ मुसलमानो, मैने तुम लोगो को कुफ़्र की दावत दी और
मैंने उन पुरानी मूर्तियों को फिर से देदीप्यमान कर दिया।.........अगर बेचारे
अत्तार को इस कुफ़्र के नाते जला दें तो ऐ लोगो, तुम लोग गवाह रहना कि मैने अपने
आपको न्योछावर करदिया है। )
तज़्किरतुल् औलिया
शैख की गद्यात्मक
कृतियों में सबसे महत्त्वपूर्ण कृति तज़्किरतुल् औलिया है। यह पुस्तक ६१७ हिजरी
में लिखी गयी थी। इस कृति में ९६ सूफ़ी तथा अन्य आध्यात्मिक व्यक्तियों के जीवन,
प्रवचन तथा चमत्कारों का वर्णन बहुत ही सरल तथा प्रवाहमय गद्य में किया गया है।
इस पुस्तक में
एक प्रस्तावना तथा ७२ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में किसी एक सूफी महात्मा के
जीवन चरित के प्रमुख पहलू पर प्रकाश डाला गया है। पहला अध्याय जाफ़र सादिक़ तथा
बहत्तरवां मंसूर हल्लाज के प्रसंगों तथा वचनों पर आधारित है। तज़्किरतुल् औलिया के
दसवी सदी हिजरी तक प्राप्त पाण्डुलिपियों में केवल ये ही बहत्तर अध्याय प्राप्त
होते हैं। बाद की पाण्डुलिपियों में ज़िक्रे मुतअख्ख़िर अज मशाइख़े कुबार के नाम
से नये अध्याय भी जुडे मिलते हैं जिनमें लगभग २५ अन्य आध्यात्मिक सन्तों के वर्णन
प्राप्त होते हैं। अन्य
प्रमुख लोग, जिनका वर्णन यहां मिलता है, ये हैं– मुहम्मद बाक, हंबल शाफ़ई, अबू
हनीफ़ा, राबिआ, इब्राहीम अदहम तथा ओवैस कर्नी आदि।
अत्तार ने पुस्तक की प्रस्तावना में तज्किरों
के चयन तथा सम्पादन की विधि का वर्णन किया है। उन्होने चौथी सदी से लेकर छठी सदी
के अन्त तक की उपलब्ध पुस्तकों की सहायता लेकर इस तज्किरे को तैयार किया है।
निम्नांकित पुस्तकों के संबन्ध में बहुत संभावना व्यक्त की जाती है कि वे तज़्करतुल्
औलिया के आधार रहे होंगे–
हीलतुल् औलिया (अब्दुर्रहमान सलमी), तबक़ाते
सूफ़िये, कश्फ़ुल् महजूब (हुजवेरी) , रिसाला ए कुशैरिये (अबुल्कासिम कुशैरिये) आदि।
तज़्किरतुल्
औलिया का सर्वप्रथम संस्करण रोनाल्ड निकोल्सन ने लन्दन से १९०५ से १९०७ के मध्य
प्रकाशित किया।
आगे की पङ्क्तियों में सूफ़ी सन्त अब्दुल्लाह
मुबारक के जीवन की प्रमुख घटनायें तथा उनके विचार तज़्किरतुल औलिया के अनुसार
वर्णित किये जा रहे हैं –
जिक्रे अब्दुल्लाह मुबारक
अब्दुल्लाह
मुबारक एक ऐसे सन्त गुजरे हैं जो जंग और अध्यात्म दोनो में अपना सानी नहीं रखते।
वे एक साल हज करते तो दूसरे साल जंग और तीसरे साल व्यापार किया करते थे। प्रारम्भ
में वे एक प्रेमिका के प्रेम में इस तरह पड़ गये थे कि एक पूरी रात उसकी प्रतीक्षा
में दर्वाजे के किनारे खड़े होकर काट दी। जब मुअज्ज़िन ने नमाज़ की बांग दी तो
उन्होंने सोने का इशारा समझा। उसी क्षण उन्होंने सांसारिक प्रमिकाओं से तोबा करके
हृदय को परमेश्वर के प्रेम में लगा दिया और इस सिद्ध अवस्था में चले गये कि एक दिन
उनकी मां ने देखा कि वे दोपहर में बाग में एक खिले हुये पेड की छाया में सो रहे थे
और एक सांप मुंह में नरगिस के फूल लेकर उससे उनके मुंह पर से मक्खियां हटा रहा था।
अपने समय में
हदीस तथा फिक्ह (धर्मशास्त्र) दोनों के पैरोकार उन्हें समान रूप से सम्मान दिया
करते थे तथा अपने झगड़ो में उन्हें मध्यस्थ बनाया करते थे।
जब कोई बुरा
व्यक्ति उनसे बिछड़ता तो वे रोने लगते कहते दुःख की बात है कि वह आदमी मुझसे बिछड़
गया और उसकी बुरी आदतें उससे नहीं बिछडीं।
निःस्पृहता में वे इतने आगे थे कि एक बार
घोड़ा सराये के आगे बांध कर नमाज पढ़ रहे थे। घोड़ा छूटकर खेत में चला गया। खेत किसी
राजपुरुष का था। उन्होंने घोड़ा छोड़ दिया और पैदल चल पड़े- कहा– इसने भौतिकता में
लिप्त लोगों का माल खा लिया अब मेरे लिये हराम हो गया।
एक बार वे रास्ते
में जा रहे थे । लोगों ने एक अन्धे से कहा अब्दुल्लाह जा रहे हैं जो भी मांगना है
मांग ले। अन्धे ने कहा – ऐ अब्दुल्लाह,
दुआ करिये कि मेरी आंखे अच्छी हो जायें । अब्दुल्लाह ने दुआ में सर झुका लिया और
व्यक्ति की आंखें अच्छी हो गयीं।
इस प्रसंग में अत्तार ने एक बुढिया और
अब्दुल्लाह के प्रसंग का वर्णन किया है जिसने हज के मौसम में महीनों के रास्ते को
कुछ समय में तय करा दिया और गुफा में ज़िक्र करते हुए अपने बेटे के पास ले गयी जो
तुरन्त ही मर गया।
अब्दुल्लाह का
एक गुलाम था जिस पर लोगों ने कब्रों से चोरी करने का इलजाम लगाया था। अब्दुल्लाह
ने उसका पीछा किया तो पता चला वह सारी रात कब्र में बने तहख़ाने के अन्दर ईश्वर के
ध्यान में लीन रहता है।
एक बार उनका एक
सय्यद से झगडा हो गया जो उनकी प्रसिद्धि तथा समृद्धि से जला करता था। उसने मुबारक
को हिन्दूज़ादा कहकर अपमानित किया बदले में मुबारक ने भी उसे कुछ कहा। रात में
दोनों के पास सपने में पैगम्बर मुहम्मद आये तथा डांट पिलायी। सुब्ह दोनों एक दूसरे
से मिले और परस्पर से क्षमा याचना की।
अत्तार ने जिक्र
किया है कि किस प्रकार अब्दुल्लाह मुबारक अपने मुरीद सह्ल बिन अब्दुल्लाह की
मृत्यु का समय पहले ही जान गये थे और अपने शिष्यों को नमाज़े जनाजा पढ़ने का आदेश
दे दिया था।
एक बार आप एक
नास्तिक से जंग कर रहे थे कि नमाज़ का समय हो गया। नास्तिक ने उन्हें नमाज़ पढ़ने
दिया। इधर जब नास्तिक अपनी इबादत को तय्यार हुआ अब्दुल्लाह ने उसे मारने के लिये
तलवार तान ली। ईश्वर ने तत्क्षण अब्दुल्लाह की लानत मलामत की। अब्दुल्लाह रोने लगे
। काफ़िर को सारी बात पता चली तो वह भी ईश्वर पर श्रद्धावान हो गया।
एक रात नीशापूर
के बाजार में उन्होंने एक ग़ुलाम को सर्दी से ठिठुरते देखा। उन्होंने ग़ुलाम से
कहा। मालिक से क्यों नहीं कहते वह बनवा कर दे देगा। गुलाम ने कहा – मैं क्या कहूं
, मालिक को स्वयं सब कुछ पता है। अब्दुल्लाह ने इसे ईश्वर पर आत्यन्तिक आस्था रखने
का एक मन्त्र माना।
एक बार एक
नौजवान आया और अब्दुल्लाह के पैरों पर गिर कर फूट फूट कर रोने लगा। इसने कहा मैने
पाप किया है कि बता नहीं सकता । पूछने पर बताया कि उसने व्यभिचार किया है। अब्दुल्लाह
ने कहा कि मै तो डर गया था कि शायद तुमने परनिन्दा की है। उन्होंने उससे कहा– ख़ुदा
का ध्यान रखो अर्थात् ऐसा अनुभव करो कि ख़ुदावन्द हमेशा तुम्हारे पास है , तुम्हे
देख रहा है।
कहते हैं कि अपनी
जिन्दगी में उन्होंने अपनी सारी दौलत दरवेशों को दे दी थी। जब भी कोई मेहमान आता
वे सारी चीजे ख़र्च कर उसकी सेवा करते । कहते, अतिथि ईश्वर के द्वारा भेजा गया हुआ
होता है। उनकी पत्नी उनसे कुढ़कर अलग हो गयी। तब उन्होंने कहा वह औरत जो मेरी
धार्मिक प्रवृत्तियों का विरोध करती हो मुझे नहीं चाहिये। ईश्वर की कृपा से एक
बड़े घराने की सुशील कन्या ने अपने पिता से अब्दुल्लाह की पत्नी बनने के लिये
अनुमति मांग ली। स्वप्न में ईश्वर ने कहा कि तुमने मेरे लिये अपनी पत्नी से तलाक
लिया था मैं इसका बदला दे रहा हूं ताकि सब लोग जान जायें कि मेरी राह में कोई भी
हानि नहीं उठा सकता।
अपने अन्तिम समय
में भी अब्दुल्लाह हंसते हुए ही प्राण छोडे।
लोगों ने सुफियान सूरी को
सपने में देखा। सुफियान ने बताया कि मृत्यु के बाद ईश्वर ने उसपर कृपा की है।
लोगों ने पूछा अब्दुल्लाह मुबारक उस दुनिया में कैसे हैं? उन्होंने बताया कि वे ऐसे हैं कि रोज़ दो
बार ईश्वर से उनका मिलन होता है।
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सन्दर्भ–
1–شیخ فرید الدین عطار نیشاپوری – تذکره الاولیا -
بررسی تصحیح متن توضیحات و فهارس
دکتر محمد استعلامی
تذکره الاولیا عطار – چاپ لیدن -2
1322 هجری (از نثر کهن)
॥॥॥ दरूने सीने मूसीकार दारम ॥॥॥॥॥